चारदीवारियों में कैद
आप और हम
बन्द हैं
तन से
मन से
विचार से
चारदीवारियों के
बीच कैद,
घुटता है मन
बिना हवा-रोशनी
और धूप के
चारों ओर
पसरा है सन्नाटा
साथ है कोई तो
बस, तन्हाई
और अँधेरा
घुटन-टूटन
और अकुलाहट के बीच
बँध हुआ है जीवन
काश !
कभी हो पाता ऐसा
चारदीवारियों का
अस्तित्व मिट जाता
और हम बन्धन मुक्त हो
आजाद पंछी की तरह
उड़ पाते
दूर-बहुत-दूर
नीले आकाश में !!
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